
वनवास के दौरान सीताजी की भेंट ऋषि अत्रि की पत्नी महासती माता अनुसुइया से होने का वृतांत आता है। अब ‘महासती’ किसको कहते हैं यह परिभाषा सुनकर ही आजकल की पति को मात्र एटीएम और रतिसुख का साथी समझनेवाली फेमिनिस्टें खून की उल्टी कर देंगी इसलिए वह विवरण फिर कभी।

कहते हैं माता अनुसुइया ने सीताजी को पतिव्रत धर्म का पालन करने की शिक्षा देने के साथ-2 उन्हें दिव्य वस्त्र आभूषण प्रदान किए जो कभी मैले नहीं होते थे एवं सदैव स्वच्छ,निर्मल एवं उजले रहते थे।( सामान्य रूप से रामायण के फिल्मांकन के दौरान सभी जगह श्रीराम,लक्ष्मण एवं सीताजी को वनवासी रूप में वल्कल वस्त्र ही धारण किए हुए दर्शाया जाता है।)
दिब्य बसन भूषन पहिराए। जे नित नूतन अमल सुहाए॥
अर्थात- (माता अनुसुइया ने) उन्हें ऐसे दिव्य वस्त्र और आभूषण पहनाए,जो नित्य-नए निर्मल और सुहावने बने रहते हैं।
हाल ही में जारी किए गए ‘आदिपुरुष’ के टीजर में सीताजी की भूमिका निभाने वाली नायिका के टॉप-पैंटनुमा कमर व कंधों पर खुले उदरदर्शना बैंगनी वस्त्रों को देखिए (अंतिम दोनों चित्र)। सीताजी वनवास में हेरम पैंट पहनती थीं? आज हम आवाज ना उठाएं तो कल को तो तुम्हें सीताजी को बिकिनी पहने सरोवर में नहाते भी दिखा देना है और तर्क दिया जाएगा कि क्या सीताजी ने इतने वर्षों तक वन में नहाया नहीं होगा तो दिखाने में क्या हर्ज है। बेवकूफ समझ रखा है क्या?

इतना ही नहीं,रामायण के अनुसार वनवास के दौरान भगवान श्रीराम ने वनक्षेत्र में रहनेवाले ऋषियों के पूजापाठ व यज्ञादि में विघ्न डालनेवाले अनेक राक्षसों का वध कर पंचवटी को राक्षसों से मुक्त कराया। परंतु रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर करोड़ों सनातनी रामभक्तों की भावनाओं को आहत करने का प्रयास करनेवाली फिल्म ‘आदिपुरुष’ के टीजर के अनुसार तो भगवान श्रीराम व सीताजी वन में इस प्रकार झूला झूलते,रोमांस करते दिखाई दे रहे हैं जैसे वे वनवास पर नहीं,हनीमून मनाने गए हों।
आज अगर आप रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर इन्हें इस छिछोरेपन की छूट देंगे तो कल को ये वामपंथी भांड़ हमारे आराध्यों को लिपलॉक किस करते भी दिखाएंगे और तर्क देंगे कि राम और सीता पतिपत्नी थे तो क्या उनमें संसर्ग नहीं होता होगा? तो दिखाने में क्या बुराई है? आप छूट देकर देखिए इन्हें ये ऐसे-2 कुत्सित वामी प्रयोग करेंगे हमारे पवित्र देवी देवताओं के साथ कि आपसे देखा नहीं जाएगा।

इन बॉलीवुड के भांड़ों की यह काल्पनिक और रचनात्मक स्वतंत्रता कभी किसी दूसरे मत संप्रदाय के आराध्यों के जीवनचरित्र के विषय में मुखर क्यों नहीं होती? है हिम्मत कबीले वालों के प्रॉफिट के साथ ऐसा कोई प्रयोग करने की? नहीं होगी ना? होनी भी नहीं चाहिए। किसी दो कौड़ी के डायरेक्टर की,किसी भी कवि,डायलॉग राइटर,फलाने ढिकाने की औकात क्यों हो करोड़ों अनुयायियों के आराध्य की छवि को विकृत करने की? हिंदुत्व को समझ क्या रखा है तुम लोगों ने? हमारी आगामी पीढियों को सीताजी के रूप में सलज्ज,शालीन दीपिका चिखलिया जी जैसे आदर्श स्वरूप के स्थान पर यह अधनंगी,बाल बिखराए राक्षसी कृति सेनन स्मरण आए यह व्यवस्था की जा रही है। नहीं करेंगे हम बर्दाश्त।

और जो-2 भी लोग ‘आदिपुरुष’ में हिंदू धर्म के आराध्यों के विकृत चित्रांकन का समर्थन कर रहे हैं उन सभी से मेरा आग्रह है इसी दीदादिलेरी से अन्य संप्रदायों के आदरणीय चरित्रों के साथ रचनात्मक स्वतंत्रता का प्रदर्शन करके दिखाएं अन्यथा हिंदुत्व को उसके हाल पर छोड़ दें। अपनी रचनात्मकता दिखाने के लिए चाहे जो जेनरे चुनो,जस्ट डोंट टच हिंदुइज्म विद योर मैलिशियस इंटैंशंस।
© Wafah Faraaz