
बाजार की ताकतें सिर्फ अपना माल नहीं बेचतीं। वो बाजार बनाती हैं। समाज का नैरेटिव बदलती हैं। और यह सब इतने महीन तरीके से करती हैं कि आप सोच भी नहीं पाते कि आप पर उसने हमला कहां किया?
अब इस यज्दी मोटरसाइकिल के विज्ञापन को ही लीजिए। कितने महीन तरीके से उसने ड्राइवर और पैसेंजर आगे पीछे कर दिया। मोटरसाइकिल को आमतौर पर पुरुषों की सवारी माना जाता है। लेकिन इस विज्ञापन में पुरुष को ही पिलियन बना दिया।
इसीलिए मैं कहता हूं बाजार सिर्फ माल बेचने का कारोबार नहीं रहा। बाजार इतना बेलगाम हो गया है कि अब से सामाजिक विध्वंस का माध्यम बन गया है।
महिलाएं मोटरसाइकिल चलायें इस पर आपत्ति नहीं है। पुरुष बच्चे की तरह मां की कमर से चिपका हुआ पिलियन बनाकर बिठा दिया जाए यह मेरी पुरुष चेतना स्वीकार करने को तैयार नहीं है। स्त्री चेतना को भी इसका बहिष्कार करना चाहिए। अगर किसी को लगता है कि यही स्त्री सशक्तीकरण है तो उससे बड़ा स्त्रियों का कोई विरोधी नहीं।