
किस्सा कुछ यूं था
जब पंडित जी ने कहा- मुझे बधाई न दें, ये मेरा नव वर्ष नहीं है।
आज भले पूरी दुनिया नया वर्ष मना रही है, लेकिन भारत में एक बड़ा वर्ग है, जो इसे नए वर्ष की मान्यता नहीं देता। इस वर्ग के अपने तर्क व तथ्य है, जो उचित भी है। सामान्यत: भारत में इस अंग्रेजी नव वर्ष का विरोध नहीं होता। मगर एक महान व्यक्तित्व ऐसे भी हुए, जिन्होंने इस परम्परा का पुरजोर विरोध करते हुए 1 जनवरी पर नव वर्ष की शुभकामनाएं देने वाले अपने शिक्षक से कहा- ‘मुझे बधाई न दे, ये मेरा नव वर्ष नहीं है।’
ये व्यक्ति थे दीनदयाल उपाध्याय | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शुरूआती प्रचारकों में से एक पंडित जी सनातन संस्कृति के उपासक थे। यह किस्सा सन् 1937 की है, जब वे छात्र जीवन में थे और कानपुर के सनातन धर्म कॉलेज में अध्ययनरत थे। तब कॉलेज में अंग्रेजी पढाने वाले शिक्षक ने 01 जनवरी को कक्षा में सभी विद्यार्थियों को नव वर्ष की बधाई दी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जानते थे कि शिक्षक पर अंग्रेजीयत का प्रभाव है। इसलिए पंडित जी ने कक्षा में तपाक से कहा आपके स्नेह के प्रति पुरा सम्मान है आचार्य, किंतु में इस नव वर्ष की बधाई नही स्वीकारूंगा क्योंकि यह मेरा नव वर्ष नहीं।’ यह सुन सभी स्तब्ध हो गए। पंडित जी ने फिर बोलना शुरू किया मेरी सस्कृति के नव वर्ष पर तो प्रकृति भी ख़ुशी से झूम उठती है और वह गुढी पाडवा को आता है। यह सुनकर शिक्षक सोचने पर मजबूर हो गए। बाद में उन्होंने स्वयं भी कभी अंग्रेजी नव वर्ष नही मनाया।
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